जय जय सत्य कबीर |
सत्यनाम सत सुकृत; सत रत सत कामी |
विगत कलेश सत धामी, त्रिभुवन पति स्वामी ||टेक ||
जयति जय कव्विरम्, नाशक भव भिरम् |
धरयो मनुज शरीरम्, शिशु वर सरतीरम् || जय २||
कमल पत्र पर शोभित, शोभाजित कैसे |
नीलांचल पर राजित, मुक्तामणि जैसे || जय २||
परम मनोहर रूपम्, प्रमुदित सुखरासी |
अति अभिनव अविनाशी, काशी पुर वासी || जय २||
हंस उबारन कारन, प्रगटे तन धारी |
पारख रूप विहारी, अविचल अधिकारी || जय २||
साहेब कबीर की आरति, अगनित अघहारी |
धर्मंदास बलिहारी, मुद मंगल कारी || जय २||
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