Wednesday, 2 August 2017

SADGURU KABIR SAHEB

जय जय सत्य कबीर |

                सत्यनाम सत सुकृत; सत रत सत कामी | 
             विगत कलेश सत धामी, त्रिभुवन पति स्वामी ||टेक ||
       जयति जय कव्विरम्, नाशक भव भिरम् |
            धरयो मनुज शरीरम्, शिशु वर सरतीरम् || जय २||
             कमल पत्र पर शोभित, शोभाजित कैसे |
        नीलांचल पर राजित, मुक्तामणि जैसे || जय २||
             परम मनोहर रूपम्, प्रमुदित सुखरासी |
       अति अभिनव अविनाशी, काशी पुर वासी || जय २||
          हंस उबारन कारन, प्रगटे तन धारी |
       पारख रूप विहारी, अविचल अधिकारी || जय २||
    साहेब कबीर की आरति, अगनित अघहारी |
        धर्मंदास बलिहारी, मुद मंगल कारी || जय २||

No comments:

Post a Comment